कभी घरों में दुबकने वाले बच्चे आज बस्ता लेकर जा रहे स्कूल

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कभी घरों में दुबकने वाले बच्चे आज बस्ता लेकर जा रहे स्कूल

कभी घरों में दुबकने वाले बच्चे आज बस्ता लेकर जा रहे स्कूल


कभी घरों में दुबकने वाले बच्चे आज बस्ता लेकर जा रहे स्कूल

रायपुर :  कभी जिन गांवों में गोलियों की गूंज सुनाई देती थी, आज वहां स्कूल की घंटियां बजती हैं। जिन गांवों में पहले बच्चे नक्सल हिंसा के भय से घरों के भीतर दुबककर बैठे होते थे, आज बेफिक्र बस्ता लेकर स्कूल की ओर दौड़ लगाते हैं। अब लोगों के मन में बच्चों के भविष्य के लिए चिंता नहीं, बल्कि चेहरे पर खुशी नजर आती है। आज सुकमा के कई गांवों में फिजा बदल चुकी है। यह बदली फिजा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार के प्रयासों का नतीजा है। सरकारी प्रयासों से अकेले सुकमा जिले में नक्सल हिंसा में ध्वस्त हो चुके 97 स्कूलों का संचालन फिर से शुरू कर लिया गया है।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में नक्सल प्रभाव बढ़ने के साथ लगातार नक्सल हिंसा भी बढ़ती रही। इस बीच सलवा-जुडूम के दौरान नक्सलियों ने स्कूलों को सुरक्षा बलों का ठिकाना मानते हुए अपना शिकार बनाया और लगातार पूरे बस्तर इलाके के स्कूलों में ब्लास्ट कर उन्हें ध्वस्त करते रहे। अब बीते तीन सालों में राज्य सरकार के प्रयासों से और सुरक्षा बलों के नक्सल उन्मूलन अभियान के बाद बस्तर में नक्सल हिंसा में काफी हद तक नियंत्रण कर लिया गया है। वहीं विकास, विश्वास और सुरक्षा के ध्येय से काम करते हुए नई इबारत लिखी जा रही है। इसी कड़ी में जहां पूरे बस्तर संभाग में नक्सल हिंसा में ध्वस्त स्कूलों में से 260 स्कूलों की अधोसंचरना को बनाकर संचालन प्रारंभ कर लिया गया है। इसमें से अकेले सुकमा जिले में ध्वस्त किए गए 123 में से 97 स्कूलों का संचालन प्रारंभ हो चुका है। इन 97 स्कूलों में वर्तमान में 3973 विद्यार्थियों का दाखिला हुआ है।

शिक्षादूत दूर कर रहे अंधियारा

सुकमा जिले में पुन: संचालन प्रारंभ कर लिए गए स्कूलों में मिनपा, कारीगुण्डम, जगरगुंडा, किस्टाराम, कामाराम जैसे अंदरूनी इलाकों के बंद पड़े स्कूल भी शामिल हैं। वहीं इन स्कूलों में स्थानीय शिक्षित युवा ही शिक्षादूत बनकर अशिक्षा के अंधियारे को चिरते हुए ज्ञान का दीपक जला रहे हैं।

बेटी तो नहीं पढ़ पायी, लेकिन बेटा पढ़ेगा

सुकमा जिले के मिनपा में रहने वाले राजा पोडियाम का बेटी को न पढ़ा पाने का दर्द उनकी आवाज से झलका।  पोडियाम ने बताया कि वे बेटी को खूब पढ़ाना चाहते थे और बच्चों का भविष्य संवारना चाहते थे, लेकिन वर्ष 2006 में ही ध्वस्त हो चुके स्कूल का संचालन अब तक फिर से शुरू न हो पाने की वजह से उनका बेटी को पढ़ाने का सपना पूरा न हो चुका। बेटी अब काफी बड़ी हो चुकी है और शादी की उम्र हो चुकी है। दूसरी ओर  पोडियाम कहते हैं बेटे पांडू को वो जरूर पढ़ाएंगे। इधर पांडू का कहना है कि वह स्कूल में मन लगाकर पढ़ाई करेगा और बड़ा होकर गुरुजी बनकर गांव के ही बच्चों को पढ़ाएगा।

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