30 Jul 2025, Wed

India China Relation : क्या भारत का चीन के बिना चल सकता है काम? पढ़ें रिपोर्ट

India China Relation : विदेश मंत्री एस जयशंकर हाल ही में चीन की यात्रा पर गए, जहां उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों ने एक बयान जारी कर कहा कि भारत-चीन के रिश्ते सामान्य हैं। लेकिन इस बयान पर विपक्ष ने सवाल उठाए और सरकार पर चीन के सामने कमजोर दिखने का आरोप लगाया।

ऐसे में हर किसी के मन में यही सवाल है कि क्या भारत के लिए चीन से दोस्ती जरूरी है, या फिर यह एक मजबूरी है? आखिर भारत की ऐसी कौन सी कमजोरी है, जिसके चलते हमें चीन के साथ रिश्ते बनाए रखने पड़ते हैं, और इसका हल क्या हो सकता है?

क्यों रहते हैं रिश्ते नाजुक?

भारत और चीन के रिश्ते हमेशा से ही उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। इतिहास गवाह है कि चीन का विस्तारवादी रवैया कई बार सामने आया है। 1962 के युद्ध से लेकर हाल की गलवान घाटी की झड़प तक, दोनों देशों के बीच तनाव की कई मिसालें हैं। फिर भी भारत को चीन के साथ बातचीत का रास्ता अपनाना पड़ता है। आखिर क्यों? क्योंकि चीन न सिर्फ हमारा पड़ोसी है, बल्कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत भी है।

पड़ोसी से ज्यादा, दोस्ती में फायदा

चीन के साथ दोस्ती करना भारत के लिए मजबूरी से ज्यादा जरूरत है। चाहे वह व्यापार हो या सामरिक स्थिति, चीन का महत्व नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि चीन से दुश्मनी की तुलना में दोस्ती ज्यादा फायदेमंद है। भले ही चीन का इतिहास भरोसा तोड़ने वाला रहा हो, लेकिन पड़ोसी होने के नाते उसके साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश करना जरूरी है।

चीन को क्यों खटकता है भारत?

चीन आज दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब है। पहले वह सिर्फ पूर्वी एशिया में अपनी ताकत दिखाता था, लेकिन अब वह दक्षिण एशिया में भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। दूसरी ओर, भारत अपनी ‘मेक इन इंडिया’ पहल के जरिए न सिर्फ आयात कम कर रहा है, बल्कि दुनिया का अगला बड़ा मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बनने की राह पर है। यही बात चीन को परेशान करती है, क्योंकि भारत भविष्य में उसका बड़ा प्रतिद्वंद्वी बन सकता है।

चीन की चालें और भारत पर असर

चीन ने भारत के खिलाफ कई बार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से कदम उठाए हैं। वह हमेशा पाकिस्तान का साथ देता रहा है। हाल के सिंधु ऑपरेशन में भी उसने पाकिस्तान को सैन्य सहायता दी। इसके अलावा, रेयर अर्थ जैसे जरूरी सामानों के निर्यात पर रोक लगाकर उसने भारत के ऑटो और सोलर जैसे सेक्टर को प्रभावित किया। इसका मकसद साफ है—भारत के कारोबार को नुकसान पहुंचाना और उसे दुनिया का अगला मैन्युफैक्चरिंग हब बनने से रोकना।

चीन का विकल्प क्या?

जब तक भारत के पास कोई ठोस विकल्प नहीं है, तब तक वह चीन पर पूरी तरह निर्भरता खत्म नहीं कर सकता। भारत का चीन के साथ हर साल करीब 100 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है, जो दुनिया में किसी भी देश के साथ सबसे ज्यादा है। यानी हम जितना सामान चीन को बेचते हैं, उससे कहीं ज्यादा वहां से खरीदते हैं। यह स्थिति चीन को भारत पर दबाव बनाने का मौका देती है। इस समस्या से निपटने के लिए भारत को अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ानी होगी और आयात पर निर्भरता कम करनी होगी।

भारत की नई रणनीति

भारत इस स्थिति को अच्छे से समझ रहा है। वह अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते कर रहा है। अगर ये समझौते सफल होते हैं, तो यह भारत के उद्योगों के लिए बड़ी जीत होगी। आज भी इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और टिकाऊ सामान जैसे कई उत्पादों के लिए हम चीन पर निर्भर हैं। अगर इनका विकल्प मिल जाए, तो भारत न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत होगा, बल्कि वह खुलकर चीन का विरोध भी कर सकेगा।

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