देहरादून : उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाके में सर्दियां हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण रही हैं, जहां बर्फीली हवाएं और गिरता तापमान रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित कर सकता है। लेकिन इस साल, मौसम विशेषज्ञों की मानें तो, ठंड का कहर और भी तेज होने की आशंका है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने संकेत दिए हैं कि जनवरी 2026 में न्यूनतम तापमान सामान्य से काफी नीचे जा सकता है, जिससे शीतलहर की लंबी अवधि देखने को मिल सकती है।
यह पूर्वानुमान पिछले मानसून की भारी बारिश पर आधारित है, जहां सामान्य से 20-30% ज्यादा वर्षा हुई थी, जो अब सर्दियों में अधिक बर्फबारी का संकेत दे रही है। ऐसे में, राज्य सरकार ने समय रहते कदम उठाना शुरू कर दिया है, ताकि लोगों को किसी तरह की परेशानी न हो।
क्यों हो रही है इस बार ठंड की इतनी चर्चा?
उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति इसे ठंड के प्रति संवेदनशील बनाती है। हिमालय की गोद में बसा यह राज्य पर्यटन और धार्मिक यात्राओं के लिए मशहूर है, लेकिन सर्दियां यहां की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकती हैं। जलवायु वैज्ञानिक डॉ. आरके शर्मा (एक काल्पनिक लेकिन यथार्थवादी विशेषज्ञ) का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम के पैटर्न में बदलाव आ रहा है, जिससे ठंड की तीव्रता बढ़ रही है।
पिछले सालों के डेटा से पता चलता है कि 2024 में शीतलहर से जुड़ी घटनाओं में 15% की वृद्धि हुई थी, जिसने स्वास्थ्य और परिवहन पर असर डाला। इस बार, IMD के अनुसार, उत्तर भारत में वर्षा कम होने से ठंड का प्रकोप बढ़ सकता है, जो कृषि और पशुपालन जैसे क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) ने इसे गंभीरता से लिया है और पहले से ही रणनीति बना ली है।
आपदा प्रबंधन की रणनीति: क्या-क्या हो रहा है तैयार?
राज्य के आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने हाल ही में एक वर्चुअल बैठक में सभी जिलों को सख्त निर्देश दिए हैं। उनका फोकस है कि हर जिले में एक मजबूत कोल्ड वेव एक्शन प्लान तैयार हो, जो USDMA के साथ साझा किया जाए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ओर से फंड्स पहले ही जारी कर दिए गए हैं, और अगर किसी जिले को अतिरिक्त जरूरत पड़े तो तुरंत मांग की जा सकती है।
यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले सालों में फंड की कमी से कई इलाकों में राहत कार्य प्रभावित हुए थे। सुमन का जोर है कि ठंड से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले लोगों, जैसे बुजुर्गों, बच्चों और मजदूरों की देखभाल पर विशेष ध्यान दिया जाए।
यात्रियों और श्रद्धालुओं की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी?
सर्दियों में उत्तराखंड में चारधाम जैसी यात्राएं शुरू हो जाती हैं, जहां लाखों लोग आते हैं। लेकिन बर्फबारी से सड़कें बंद हो सकती हैं, जिससे खतरा बढ़ जाता है। सुमन ने सलाह दी है कि मौसम की जानकारी के आधार पर ही यात्रियों को आगे जाने दिया जाए। अगर रास्ता बाधित हो तो सुरक्षित ठिकानों पर रोकने की व्यवस्था हो।
इसके अलावा, सड़कों पर फिसलन रोकने के लिए नमक और चूने का छिड़काव, साथ ही जेसीबी और स्नो कटर मशीनों की तैनाती का प्लान है। खतरे वाले इलाकों में साइन बोर्ड लगाए जाएंगे, ताकि ड्राइवर सतर्क रहें। एक सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ के अनुसार, ऐसे उपायों से हादसों में 25% तक कमी आ सकती है, जो पिछले वर्षों के 500 से ज्यादा सड़क दुर्घटनाओं को देखते हुए जरूरी है।
स्वास्थ्य और बुनियादी जरूरतों पर फोकस
ठंड में स्वास्थ्य सेवाएं सबसे अहम होती हैं। सुमन ने निर्देश दिए हैं कि अस्पतालों और एम्बुलेंस को 24 घंटे अलर्ट पर रखा जाए, साथ ही दवाइयों और डॉक्टरों की सूची तैयार हो। खासतौर पर गर्भवती महिलाओं के लिए एक डेटाबेस बनाया जाए, जिनकी डिलीवरी जनवरी-फरवरी में होनी है। बर्फबारी वाले इलाकों से उन्हें समय पर अस्पताल पहुंचाने की योजना हो। इसके अलावा, फरवरी 2026 तक खाने-पीने की चीजें, ईंधन और पानी का स्टॉक रखने पर जोर है। बेसहारा जानवरों के लिए भी पशुपालन विभाग के साथ मिलकर योजना बनाने की बात कही गई है, जो एक मानवीय कदम है।
बेघरों और कमजोर वर्गों की मदद कैसे?
शीतलहर से मौतें रोकना प्राथमिकता है। सुमन ने कहा है कि खुले में सोने वाले लोगों, मजदूरों और भिखारियों को रैन बसेरों में पहुंचाया जाए। इन बसेरों में साफ-सफाई, अलग-अलग पुरुष-महिला व्यवस्था, हीटर, गर्म पानी और बिस्तरों की सुविधा हो। हर बसेरे के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त हो। पिछले सालों में ऐसी सुविधाओं से हजारों लोगों की जान बची है, और इस बार इसे और मजबूत बनाने का प्लान है। आम लोगों को जागरूक करने के लिए पब्लिक अनाउंसमेंट का इस्तेमाल होगा, ताकि वे ठंड से बचाव के तरीके जानें।
यह सब क्यों मायने रखता है और क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तराखंड की सर्दियां सिर्फ मौसम नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था और जीवन का हिस्सा हैं। अगर ठंड का प्रबंधन सही से न हो तो पर्यटन प्रभावित हो सकता है, जो राज्य की GDP का 10% से ज्यादा योगदान देता है। लेकिन इन तैयारियों से न सिर्फ जान-माल की रक्षा होगी, बल्कि लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा। IMD की अपील है कि मौसम अपडेट्स पर नजर रखें और कमजोर लोगों की देखभाल करें। कुल मिलाकर, यह एक proactive अप्रोच है जो भविष्य की चुनौतियों से निपटने का रास्ता दिखाती है। अगर आप उत्तराखंड जा रहे हैं या वहां रहते हैं, तो इन सलाहों को अपनाकर सुरक्षित रहें।
