Uttarakhand Earthquake Risk : राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) ने 22 साल बाद भारत का नया सीस्मिक हैज़र्ड मैप जारी किया है। इस बार पहली बार पूरा हिमालयी क्षेत्र — उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और पूरा पूर्वोत्तर — सबसे ऊँचे जोखिम वाले Zone-VI में रखा गया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार मध्य हिमालय में पिछले 200-500 साल से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया, जिससे प्लेटों के नीचे भयानक मात्रा में ऊर्जा जमा हो चुकी है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, रिहाई का दबाव बढ़ता जा रहा है।कौन-कौन से शहर अब सबसे ज्यादा खतरे में?
- देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, श्रीनगर (गढ़वाल)
- शिमला, मनाली, धर्मशाला
- जम्मू, श्रीनगर (कश्मीर), लेह
- दिल्ली-NCR (क्योंकि यह हिमालय की छाया में है)
- गुवाहाटी, इटानगर, गंगटोक समेत पूरा नॉर्थ-ईस्ट
नए नक्शे के मुताबिक अब भारत का 61% भू-भाग उच्च से अत्यधिक भूकंप जोखिम में आ गया है। यह नक्शा 2026 से पूरे देश में लागू हो जाएगा। क्यों बढ़ रहा है खतरा कई गुना?
भू-वैज्ञानिक और IIT रुड़की के पूर्व प्रोफेसर डॉ. योगेंद्र सिंह कहते हैं, “जब हम जंगलों को काटते हैं, ढलानों को अस्थिर करते हैं, नदियों के रास्ते बदलते हैं और बिना वैज्ञानिक अध्ययन के लगातार ब्लास्टिंग करते हैं, तो हम भूकंप को खुद न्योता दे रहे होते हैं। पेड़ जड़ों से मिट्टी को बाँधे रखते हैं। पेड़ हटते ही लैंडस्लाइड बढ़ता है, मिट्टी ढीली होती है और प्लेटों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।”
पिछले 15 साल में उत्तराखंड में 50 लाख से ज्यादा पेड़ विभिन्न प्रोजेक्ट्स के नाम पर काटे जा चुके हैं। चारधाम ऑल-वेदर रोड, हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स, रियल एस्टेट और खनन के लिए बड़े पैमाने पर ब्लास्टिंग हुई है।अगर बड़ा भूकंप आया तो क्या होगा?विशेषज्ञों का अनुमान है कि हिमालय में 8+ तीव्रता का भूकंप आने पर:
- लाखों लोग एक साथ प्रभावित हो सकते हैं
- गंगा-यमुना जैसी बड़ी नदियों में बाँध टूटने से बाढ़ का खतरा
- दिल्ली तक कंपन महसूस होगा, पुरानी इमारतें गिर सकती हैं
- सड़कें, बिजली, पानी सब ठप
असली सवाल: विकास या विनाश? हम सब चाहते हैं कि पहाड़ तक सड़कें पहुँचें, बिजली आए, रोजगार बढ़े। लेकिन सवाल यह है — क्या इसके लिए हिमालय को ही काट डालना जरूरी है? सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ने भी कई बार चेतावनी दी है कि इको-सेंसिटिव जोन में भारी मशीनरी और ब्लास्टिंग पर रोक लगाने की। फिर भी बड़ी-बड़ी कंपनियों को लगातार छूट मिलती रही।अब आगे क्या होना चाहिए?
- सभी चल रहे प्रोजेक्ट्स की तुरंत भूकंप-सुरक्षा समीक्षा हो
- इको-सेंसिटिव और साइलेंट जोन में जंगल कटाई पर पूर्ण रोक
- हर प्रोजेक्ट के लिए स्वतंत्र भू-वैज्ञानिक सर्वे अनिवार्य हो
- स्थानीय लोगों और पर्यावरण विशेषज्ञों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाए
- उत्तराखंड के लिए अलग से सख्त “हिमालय नीति” बने
हिमालय सिर्फ पहाड़ नहीं, भारत की जीवनरेखा है। इसे बचाना हर उस व्यक्ति का कर्तव्य है जो यहाँ साँस लेता है।
