अतीत को पढ़ना और भविष्य की चौखट पर करना है भारतीय परंपराओं को पुनः स्थापित : मंत्री ठाकुर

खबर दुनिया की...

  1. Home
  2. राज्य
  3. मध्य प्रदेश

अतीत को पढ़ना और भविष्य की चौखट पर करना है भारतीय परंपराओं को पुनः स्थापित : मंत्री ठाकुर

भोपाल : राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आज अतीत को पढ़ना,...


अतीत को पढ़ना और भविष्य की चौखट पर करना है भारतीय परंपराओं को पुनः स्थापित : मंत्री  ठाकुर

भोपाल : राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आज अतीत को पढ़ना, वर्तमान गढ़ना और भविष्य की चौखट पर भारतीय परंपराओं को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है। यह काम शिक्षकों से अच्छा कोई नहीं कर सकता। यह बात संस्कृति, पर्यटन और अध्यात्म मंत्री उषा ठाकुर रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में “इतिहास व संचार की भारतीय संस्कृति” पुस्तक विमोचन और व्याख्यान के दौरान कही।

मंत्री ठाकुर ने कहा कि भारतीय दर्शन और वैदिक जीवन पद्धति संसार की सर्वश्रेष्ठ पद्धती है। उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव का उल्लेख करते हुए बताया कि जो राष्ट्र बलिदानियों को याद नहीं रखता, उस राष्ट्र को कोई याद नहीं रखता। मंत्री ठाकुर ने कहा कि कहा कि आज समाज में अवसादों के कारणों पर भी शोध होना चाहिए। उन्होंने आह्वान किया कि घरों में प्रत्येक भारतीय को घर की बैठकों में महापुरुषों, क्रांतिकारियों और बलिदानियों के चित्र रखने चाहिये। यह चित्र परिवार में सद्गुणों के चित्त का निर्माण करेंगे और युवा पीढ़ी को प्रोत्साहित करेंगे ।

पूर्व अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव, कुलाधिपति रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय संतोष चौबे,  प्रो. चांसलर सिद्धार्थ चतुर्वेदी, कुलपति डॉ. ब्रम्हप्रकाश पेठिया और शिक्षाविद् अमिताभ सक्सेना भी उपस्थित रहे। मंत्री ठाकुर को स्मरण स्वरूप विश्वविद्यालय की टीम ने कथादेश, कथा मध्यप्रदेश वनमाली पत्रिका और विश्वविद्यालय के प्रकाशन की प्रति भेंट की।

मुख्य वक्ता मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि यह विडंबना है कि हमें जो इतिहास की संरचना दी गई है। उसमें हमने इतिहास को व्यक्ति और वंशों तक सीमित कर दिया। हमें समुदाय का इतिहास, स्वास्थ्य का इतिहास, नदियों का इतिहास आदि की तरह इतिहास को जानने की आवश्यकता थी। हमारी आरण्यक संस्कृति ऋषि, पशु और समुदाय के सहअस्तित्व की संस्कृति थी। भारतीय ज्ञान परंपराओं की विशिष्टतओं को जानना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमारे यहाँ इतिहास को सुरक्षित रखने की वैज्ञानिक परंपरा थी।

कुलाधिपति संतोष चौबे ने बताया कि चित्रकला, मूर्तिकला, कथाएँ और कविताएँ संचार की पद्धतियाँ हैं। यह विडंबना है कि हम कालिदास को शेक्सपियर और समुद्रगुप्त को नेपोलियन कहते हैं। जबकि कालिदास और समुद्रगुप्त शेक्सपियर और नेपोलियन से बहुत पहले के हैं। हमें अपनों पर गर्व करना होगा। भारतीय संचार परंपराओं के माध्यम से बड़ा विस्तार हुआ है। हमें अपनी परंपराओं और इतिहास को पहचानना है। हमें समग्रता के स्वरूप को अपनाते हुए सारे इतिहास को सही करने का काम करना है।

शिक्षाविद प्रो. अमिताभ सक्सेना ने कहा कि यह भ्रांति फैलाई गई कि भारत में इतिहास लिखने की परंपरा नहीं थी, सिर्फ श्रुति आधारित इतिहास लिखा गया। उन्होंने धर्मपाल जी के कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी स्थापित मान्यता को नष्ट करने के लिये उसी मान्यता का सहारा लिया जाता है।

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. ब्रम्ह प्रकाश पेठिया ने कहा कि विश्वविद्यालय कला और साहित्य को बढ़ावा देने के लिये निरंतर प्रयासरत है। विश्वविद्यालय के चांसलर प्रो.सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने बताया कि विश्वविद्यालय गंभीर एवं महत्वपूर्ण विषयों पर सार्थक कार्यक्रमों का आयोजन लगातार करता आ रहा है। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शिक्षाविद फकल्टी और विद्यार्थी ऑनलाइन और ऑफलाइन जुड़े।

Around the web