Dehradun : देहरादून में एक ऐसी सच्चाई सामने आई है, जो समाज के सबसे कमजोर वर्ग, यानी दिव्यांग असहाय बालिकाओं (disabled helpless girls) के प्रति कुछ कथित कल्याणकारी संस्थाओं की लापरवाही को उजागर करती है। ये संस्थाएं, जो समाज कल्याण (Social Welfare) और मानव सेवा (human service) के नाम पर सरकारी और विदेशी फंडिंग (foreign funding) हासिल करती हैं, वास्तव में जरूरतमंद बच्चों को आश्रय देने में नाकाम रही हैं।
हाल ही में, जिला प्रशासन (District Administration) को ऐसी शिकायतें मिलीं कि इन संस्थाओं ने 20 दिव्यांग बालिकाओं को अपने केंद्रों में दाखिला देने से मना कर दिया। इस घटना ने न केवल मानवता पर सवाल उठाए, बल्कि प्रशासन को सख्त कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया।
जिलाधिकारी सविन बंसल (DM Savin Bansal) ने इस मामले को गंभीरता से लिया और तुरंत एक उच्च स्तरीय जांच समिति (high-level investigation committee) गठित की। इस समिति को 10 बिंदुओं पर जांच करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें संस्थाओं की क्षमता, संसाधनों (resources), और स्टाफ (staff) की वास्तविक स्थिति की पड़ताल शामिल है।
डीएम ने स्पष्ट किया कि यदि कोई संस्था मानकों का उल्लंघन करती पाई गई, तो उसका पंजीकरण (registration) रद्द कर दिया जाएगा। उन्होंने समाज कल्याण विभाग (Social Welfare Department) और जिला प्रोबेशन अधिकारी (District Probation Officer) को भी आड़े हाथों लिया, यह कहते हुए कि उनका काम केवल दस्तखत करना नहीं, बल्कि अपनी शक्तियों का उपयोग कर इन बच्चों के हितों की रक्षा करना है।
ये संस्थाएं, जैसे बजाल इंस्टिट्यूट ऑफ लर्निंग (Bajal Institute Of Learning), लतिका राय फाउंडेशन (Latika Roy Foundation), और रैफल राइडर चौशायर इंटरनेशनल सेंटर (Raphael Ryder Cheshire International Centre), कागजों पर तो बड़े-बड़े दावे करती हैं। ये दावा करती हैं कि उनके पास विशेषज्ञ (experts), शिक्षक (teachers), और पर्याप्त संसाधन (resources) हैं, लेकिन हकीकत में ये दावे खोखले साबित हो रहे हैं।
कई बार इन संस्थानों में न तो बताए गए स्टाफ मौजूद होते हैं और न ही बच्चों की वह संख्या, जो पंजीकरण के दस्तावेजों में दर्शाई जाती है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या ये संस्थाएं सेवा (service) के नाम पर केवल व्यवसाय (business) चला रही हैं?
जिलाधिकारी ने सख्त लहजे में कहा, “दिव्यांग और असहाय बच्चों का शोषण (exploitation) और उनके अधिकारों का हनन (rights violation) किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” प्रशासन ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर इन संस्थाओं ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया, तो उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई (strict action) की जाएगी। डीएम ने जोर देकर कहा कि मानव कल्याण (human welfare) सर्वोपरि है, और कोई भी संस्था इसे व्यापार का अड्डा नहीं बना सकती।
इस घटना ने देहरादून (Dehradun) के लोगों में एक नई जागरूकता पैदा की है। समाज के हर तबके को यह समझने की जरूरत है कि दिव्यांग बच्चों का भविष्य (future of disabled children) केवल कागजों पर लिखे वादों से नहीं, बल्कि वास्तविक प्रयासों से सुरक्षित होगा। प्रशासन की इस पहल से उम्मीद जगी है कि जल्द ही ऐसी संस्थाओं की पोल खुल जाएगी, जो सेवा के नाम पर केवल लाभ कमाने में लगी हैं।