Uttarakhand News : उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं को रोजगार और प्रशिक्षण का झांसा देकर ठगने वाली बिहार की संस्था सिडको (लघु उद्योग विकास परिषद) पर पुलिस ने कड़ा शिकंजा कस दिया है। देहरादून के अजबपुर में कार्यालय खोलकर युवाओं से मोटी रकम वसूलने वाली इस संस्था के खिलाफ नेहरू कॉलोनी थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए देहरादून के एसएसपी को त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए, जिसके बाद पुलिस ने कंपनी के सभी बैंक खातों और इसके अकाउंटेंट के खातों को फ्रीज कर दिया। जांच में सामने आया कि सिडको ने सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार और रोजगार प्रशिक्षण के नाम पर प्रति व्यक्ति 6100 रुपये की उगाही की थी।
ठगी का जाल और पुलिस की कार्रवाई
पटना में रजिस्टर्ड सिडको ने उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं को निशाना बनाया। संस्था का दावा था कि वह सरकारी योजनाओं को बढ़ावा देने और युवाओं को रोजगार प्रशिक्षण देने के लिए यह राशि ले रही है। लेकिन जांच में खुलासा हुआ कि कंपनी की कार्यप्रणाली में भारी गड़बड़ियां थीं।
नेहरू कॉलोनी पुलिस ने शिकायत के आधार पर जांच शुरू की और पाया कि सिडको ने अजबपुर में कार्यालय खोलकर सैकड़ों युवाओं से पैसे जमा कराए। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए कार्यालय से सभी दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त कर लिए। इसके साथ ही कंपनी के खातों से संदिग्ध लेन-देन वाले अन्य खातों को भी चिह्नित कर फ्रीज करने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
कैसे काम करता था सिडको का खेल?
विवेचना में सामने आया कि सिडको बिहार के तीन लोगों के नाम पर रजिस्टर्ड है। संस्था ने एक पिरामिड स्कीम की तरह काम किया, जिसमें नए सदस्य जोड़ने वाले को प्रति व्यक्ति 400 रुपये का कमीशन दिया जाता था। लेकिन कंपनी के बायलॉज में न तो प्रशिक्षण देने और न ही रोजगार देने के लिए किसी भुगतान का जिक्र था।
यह ठगी का ऐसा जाल था, जिसने बेरोजगार युवाओं की उम्मीदों को तोड़ा। पुलिस अब इस मामले में गहराई से जांच कर रही है और दोषियों को सजा दिलाने के लिए हरसंभव कदम उठा रही है।
मुख्यमंत्री का सख्त रुख
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घटना को गंभीरता से लिया है। उन्होंने साफ कर दिया कि बेरोजगार युवाओं के साथ ठगी करने वालों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। उनके निर्देश पर पुलिस ने तेजी से कार्रवाई शुरू की और जांच को और गहरा करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
इस मामले ने उत्तराखंड में बेरोजगार युवाओं की स्थिति और ऐसी फर्जी संस्थाओं के खतरे को फिर से उजागर किया है।