4 Aug 2025, Mon

भारत-पाकिस्तान में अकबर-औरंगजेब की छवि में ज़मीन-आसमान का फर्क, सच्चाई जान रह जाएंगे दंग –

Mughal History : एनसीईआरटी की कक्षा 8 की इतिहास की नई किताब में मुगल शासकों, खासकर अकबर और औरंगजेब के शासनकाल को देखने का नजरिया बदला गया है। इस बदलाव ने भारत में बहस छेड़ दी है। किताब में अकबर के शासन को “अन्य धर्मों के प्रति क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण” बताया गया है, वहीं औरंगजेब को धार्मिक रूप से कट्टर शासक के रूप में पेश किया गया है।

लेकिन अगर पड़ोसी देशों की बात करें, तो पाकिस्तान और बांग्लादेश की स्कूली किताबों में इन दोनों शासकों को बिल्कुल अलग तरीके से दिखाया जाता है। आइए, जानते हैं कि इन तीनों देशों में इतिहास की किताबें क्या कहती हैं और क्यों हो रहा है विवाद।

भारत में क्या बदला?

एनसीईआरटी की नई किताब में अकबर की धार्मिक सहिष्णुता को कुछ हद तक सराहा गया है। मिसाल के तौर पर, जजिया कर हटाने और दीन-ए-इलाही जैसे कदमों को उनकी उदार नीतियों का हिस्सा बताया गया है। लेकिन साथ ही, किताब में बाबर, अकबर और औरंगजेब जैसे मुगल शासकों के दौर में मंदिर तोड़ने, युद्धों की हिंसा और दमनकारी नीतियों का भी जिक्र है।

औरंगजेब के बारे में लिखा गया है कि उन्होंने गैर-मुस्लिमों पर जजिया कर दोबारा लागू किया और कई शहरों में मंदिरों व गुरुद्वारों को नुकसान पहुंचाया।

इन बदलावों पर भारत में दो तरह की राय सामने आ रही हैं। कुछ इतिहासकारों और शिक्षाविदों का मानना है कि किताबों में मुगलों और दिल्ली सल्तनत से जुड़े हिस्सों को हटाने या बदलने से इतिहास को एक खास नजरिए से पेश किया जा रहा है, जो बच्चों में एकतरफा सोच पैदा कर सकता है।

दूसरी ओर, कुछ लोग इसे समर्थन दे रहे हैं। उनका कहना है कि ये बदलाव बच्चों को इतिहास को गहराई से समझने और आलोचनात्मक सोच विकसित करने में मदद करेंगे।

पाकिस्तान में औरंगजेब हीरो, अकबर विलेन

पाकिस्तान की स्कूली किताबों में औरंगजेब को एक आदर्श शासक के रूप में दिखाया जाता है। उन्हें “इस्लाम का रक्षक” और “न्यायप्रिय” बादशाह बताया जाता है। उनकी सादगी, जैसे कि कुरान की नकल लिखकर पैसे कमाने की बात, को खूब बढ़ावा दिया जाता है। जजिया कर को “इस्लामी परंपरा की वापसी” के तौर पर जायज ठहराया जाता है। उनके दक्षिण भारत के युद्धों को “इस्लाम का प्रसार” कहा जाता है, भले ही इन युद्धों ने मुगल साम्राज्य को कमजोर किया।

वहीं, अकबर की तस्वीर बिल्कुल उलट है। पाकिस्तान की किताबों में उन्हें “इस्लाम से भटका हुआ” शासक बताया जाता है। उनकी दीन-ए-इलाही नीति को “इस्लाम विरोधी” करार दिया जाता है। अकबर के हिंदू राजाओं, जैसे राजा मानसिंह, के साथ दोस्ती और वैवाहिक रिश्तों को “इस्लामी सत्ता का अपमान” कहा जाता है। किताबों में लिखा जाता है कि अकबर ने इस्लामी नियमों को नजरअंदाज किया और “भारतीय सांस्कृतिक मिश्रण” को बढ़ावा देकर इस्लामी पहचान को कमजोर किया।

बांग्लादेश में अकबर को सम्मान, औरंगजेब पर सवाल

बांग्लादेश की पाठ्यपुस्तकों में अकबर को एक कुशल और सहिष्णु शासक के रूप में पेश किया जाता है। उनकी सुलह-ए-कुल नीति और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के कदमों की तारीफ होती है। टोडरमल की भू-राजस्व प्रणाली जैसे प्रशासनिक सुधारों को भी खास जगह दी जाती है।

दूसरी ओर, औरंगजेब को कट्टर सुन्नी शासक के रूप में देखा जाता है। उनके जजिया कर और मंदिर तोड़ने जैसे कदमों की आलोचना होती है, हालांकि कुछ किताबों में उन्हें कठोर लेकिन न्यायप्रिय शासक भी बताया जाता है।

क्यों है विवाद?

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुगल शासकों को लेकर इतिहास की अलग-अलग व्याख्या बताती है कि स्कूली किताबें सिर्फ तथ्य नहीं, बल्कि देश की सांस्कृतिक और वैचारिक सोच को भी दर्शाती हैं। भारत में एनसीईआरटी की किताबों में हुए बदलाव पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये इतिहास को संतुलित तरीके से पेश कर रहे हैं या किसी खास दृष्टिकोण को बढ़ावा दे रहे हैं। वहीं, पाकिस्तान और बांग्लादेश की किताबें भी अपने-अपने देश के नजरिए को मजबूत करने की कोशिश करती दिखती हैं।

ये बहस बताती है कि इतिहास सिर्फ अतीत की कहानी नहीं, बल्कि वर्तमान की सोच और भविष्य की दिशा को भी प्रभावित करता है। बच्चों को क्या पढ़ाया जाए, ये सवाल हर देश में गंभीर चर्चा का विषय बना हुआ है।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *