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हरिद्वार में इंसानियत शर्मसार, नवजात को कपड़े में लपेटकर रेलवे ट्रैक पर फेंका

By: Sansar Live Team

On: Monday, April 14, 2025 3:51 PM

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Haridwar : उत्तराखंड के पवित्र शहर हरिद्वार में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने हर किसी का दिल दहला दिया। भीमगोड़ा इलाके में रेलवे ट्रैक के पास एक नवजात शिशु को कपड़े में लपेटकर छोड़ दिया गया। इस खबर ने पूरे शहर में सनसनी मचा दी। आखिर कौन हो सकता है इतना बेरहम, जो एक मासूम की जिंदगी को इस तरह खतरे में डाल दे? आइए, इस हृदयविदारक घटना के बारे में विस्तार से जानते हैं।

सुबह की सैर और चौंकाने वाली खोज

हरिद्वार का भीमगोड़ा इलाका, जहां सुबह की शांति और गंगा की लहरों का शोर आम बात है, वहां आज कुछ और ही मंजर था। सुबह-सुबह रेलवे ट्रैक के पास से गुजर रहे लोगों के कानों में एक मासूम की रोने की आवाज पड़ी। पहले तो किसी को यकीन नहीं हुआ, लेकिन जब पास जाकर देखा, तो सभी के होश उड़ गए। एक चादर में लिपटा हुआ नवजात शिशु वहां पड़ा था, जिसके पास एक दूध की बोतल भी रखी थी। यह नजारा देखकर वहां मौजूद हर शख्स स्तब्ध रह गया। किसी ने फौरन पुलिस को सूचना दी, और देखते ही देखते मामला पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन गया।

पुलिस की त्वरित कार्रवाई और मासूम की सुरक्षा

सूचना मिलते ही हरिद्वार पुलिस तुरंत हरकत में आई। भीमगोड़ा थाने की टीम ने मौके पर पहुंचकर नवजात को अपने कब्जे में लिया और उसे तुरंत नजदीकी अस्पताल भेजा। प्रारंभिक जांच में पता चला कि बच्चा करीब 8-10 दिन का है और उसकी हालत स्थिर है। पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगालने शुरू कर दिए हैं। अधिकारियों का कहना है कि इस घटना के पीछे की सच्चाई जल्द सामने लाई जाएगी, और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।

स्थानीय लोगों का गुस्सा और आभार

इस घटना ने स्थानीय लोगों में गुस्सा और दुख दोनों पैदा किया है। कई लोगों का कहना है कि अगर समय रहते बच्चे की आवाज न सुनी जाती, तो शायद कोई अनहोनी हो सकती थी। एक स्थानीय निवासी ने भावुक होते हुए कहा, “यह बच्चा भगवान की कृपा से बच गया। लेकिन जिसने ऐसा किया, उसका दिल कैसे इतना पत्थर हो सकता है?” दूसरी ओर, लोग पुलिस की त्वरित कार्रवाई की सराहना भी कर रहे हैं। यह घटना एक बार फिर समाज में मानवता और जिम्मेदारी जैसे सवालों को जन्म दे रही है।

क्या कहती है यह घटना?

हरिद्वार जैसे पवित्र शहर में इस तरह की घटना न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि यह हमें सोचने पर मजबूर करती है। एक मासूम, जो अभी दुनिया को ठीक से देख भी नहीं पाया, उसे इस तरह बेसहारा छोड़ देना इंसानियत पर सवाल उठाता है। हालांकि, यह कहावत कि “जाको राखे साइयां, मार सके न कोय” इस मासूम पर एकदम सटीक बैठती है। उसकी जिंदगी बच गई, लेकिन अब सवाल यह है कि आगे क्या होगा? क्या पुलिस इस मामले की तह तक पहुंच पाएगी? और सबसे बड़ा सवाल, क्या हमारा समाज ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कुछ करेगा?

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