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घोड़ा-खच्चरों के लिए खतरनाक बना हॉर्स फ्लू, पूरे जिले में यात्रा पर रोक

By: Sansar Live Team

On: Tuesday, March 25, 2025 3:21 PM

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रुद्रप्रयाग : उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक अनचाही मुसीबत ने दस्तक दी है। बसुकेदार उप तहसील के बीरों, बष्टी, जलई और मद्महेश्वर घाटी के मनसूना गांवों में घोड़ा-खच्चरों को हॉर्स फ्लू यानी इक्वाइन इन्फ्लूएंजा ने अपनी चपेट में ले लिया है। यह श्वसन रोग इतना खतरनाक है कि जिले के 16 घोड़ा-खच्चर इससे पीड़ित हो चुके हैं।

तेज बुखार, नाक से पानी बहना, खांसी और शरीर पर दाने जैसे लक्षणों ने इन जानवरों को कमजोर कर दिया है। हालात ऐसे हैं कि ये पानी तक नहीं पी पा रहे। इस संकट ने न सिर्फ पशुपालकों की चिंता बढ़ा दी है, बल्कि केदारनाथ यात्रा पर भी असर डाला है।

गांवों में दहशत, डॉक्टरों की टीम सक्रिय

ग्रामीणों की शिकायत के बाद पशुपालन विभाग हरकत में आया। डॉक्टरों की एक टीम ने गांवों का दौरा किया और बीमार घोड़ा-खच्चरों के खून के नमूने लिए। ये सैंपल जांच के लिए हरियाणा के हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान भेजे गए हैं। साथ ही, प्रभावित जानवरों का इलाज भी शुरू कर दिया गया है।

मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. आशीष रावत बताते हैं कि हॉर्स फ्लू सांस के जरिए तेजी से फैलता है। इसलिए इसे काबू में करना जरूरी है। ग्रामीणों का कहना है कि उनके लिए ये जानवर सिर्फ सहारा नहीं, बल्कि परिवार का हिस्सा हैं। ऐसे में उनकी हालत देखकर सब परेशान हैं।

केदारनाथ यात्रा पर ब्रेक, आवागमन पर रोक

हॉर्स फ्लू के बढ़ते खतरे को देखते हुए प्रशासन ने सख्त कदम उठाए हैं। केदारनाथ यात्रा के लिए घोड़ा-खच्चरों के स्वास्थ्य जांच, पंजीकरण और बीमा के शिविर अगले 10 दिनों तक स्थगित कर दिए गए हैं। इतना ही नहीं, पूरे जिले में घोड़ा-खच्चरों के आवागमन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है। नियम तोड़ने वालों के खिलाफ पशुओं में संक्रामक रोग रोकथाम अधिनियम 2009 के तहत कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। यह फैसला यात्रियों और पशुपालकों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर लिया गया है, लेकिन इससे यात्रा से जुड़े लोगों की आजीविका पर भी सवाल उठने लगे हैं।

ठीक होने में लगेगा समय

डॉक्टरों का कहना है कि हॉर्स फ्लू से पीड़ित घोड़ा-खच्चर आमतौर पर 20 से 25 दिनों में ठीक हो जाते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में यह संक्रमण लंबे समय तक परेशानी का सबब बन सकता है। पिछले दो दिनों में ये मामले सामने आए हैं और अभी स्थिति पर नजर रखी जा रही है। ग्रामीणों को सलाह दी गई है कि वे अपने जानवरों को अलग रखें और लक्षण दिखते ही तुरंत सूचना दें। यह बीमारी भले ही जानलेवा न हो, लेकिन इसकी रफ्तार और प्रभाव ने सबको सतर्क कर दिया है।

रुद्रप्रयाग के ये हालात न सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए चुनौती हैं, बल्कि केदारनाथ यात्रा पर निर्भर अर्थव्यवस्था के लिए भी चिंता का विषय हैं। प्रशासन और पशुपालन विभाग मिलकर इस संकट से निपटने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बीमारी और फैलेगी? या समय रहते इसे काबू कर लिया जाएगा? फिलहाल, ग्रामीणों और यात्रियों को धैर्य रखना होगा।

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