14 Jul 2025, Mon

उत्तराखंड में भूकंप अलर्ट! उत्तराखंड में भूकंप का बड़ा खतरा, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

Uttarakhand News : उत्तराखंड में बड़े भूकंप की आशंका ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। हिमालयी क्षेत्र में धरती के अंदर जमा हो रही ऊर्जा इस खतरे की वजह बन रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि हाल के समय में छोटे-छोटे भूकंपीय झटकों की बढ़ती संख्या इस बात का संकेत दे रही है कि बड़ा भूकंप कभी भी आ सकता है। उत्तराखंड में पहले भी 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली में बड़े भूकंप आ चुके हैं, और अब फिर से खतरा मंडरा रहा है।

पिछले कुछ महीनों में उत्तराखंड में छोटे भूकंपों की संख्या बढ़ी है। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले छह महीनों में 1.8 से 3.6 तीव्रता के 22 भूकंप दर्ज किए गए हैं। ये झटके चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और बागेश्वर में सबसे ज्यादा महसूस हुए। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये छोटे झटके बड़े भूकंप से पहले की चेतावनी हो सकते हैं।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत बताते हैं कि हिमालय में टेक्टोनिक प्लेटों की गति रुकने से ऊर्जा जमा हो रही है, जो बड़े भूकंप का कारण बन सकती है।

जून में देहरादून में देशभर के भू-वैज्ञानिकों ने इस मुद्दे पर गहन चर्चा की। वाडिया इंस्टीट्यूट और एफआरआई में हुई कार्यशालाओं में वैज्ञानिकों ने बताया कि अगर बड़ा भूकंप आता है, तो उसकी तीव्रता 7.0 के आसपास हो सकती है। उन्होंने यह भी समझाया कि 4.0 तीव्रता के भूकंप की तुलना में 5.0 तीव्रता का भूकंप 32 गुना ज्यादा ऊर्जा छोड़ता है। अभी जो छोटे भूकंप आ रहे हैं, उनकी संख्या इतनी नहीं है कि धरती की सारी ऊर्जा निकल जाए। शोध बताते हैं कि बड़े भूकंप से पहले छोटे झटकों की संख्या बढ़ जाती है।

भूकंप का अनुमान लगाना क्यों है मुश्किल?

भूकंप के बारे में सटीक भविष्यवाणी करना आसान नहीं है। वैज्ञानिक यह तो बता सकते हैं कि भूकंप कहां आ सकता है, लेकिन कब और कितना बड़ा होगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। उत्तराखंड में दो जीपीएस सिस्टम लगाए गए हैं, जो यह पता लगाने में मदद करते हैं कि किस क्षेत्र में ज्यादा ऊर्जा जमा हो रही है। लेकिन, सटीक जानकारी के लिए और सेंसर लगाने की जरूरत है।

भूकंप की वजह क्या है?

जब धरती के अंदर दबाव बढ़ता है, तो चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे छोटे भूकंप आते हैं। लेकिन, भूगर्भ में मौजूद पानी इन दरारों को भर देता है, जिससे छोटे झटके रुक जाते हैं। फिर अचानक बड़ा भूकंप आता है। चमोली और उत्तरकाशी में पहले भी ऐसा देखा गया है।

पहाड़ या मैदान: कहां ज्यादा खतरा?

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर एक ही तीव्रता का भूकंप पहाड़ और मैदान में आता है, तो मैदानी इलाकों में नुकसान ज्यादा होगा। हिमालय में बड़े भूकंप आमतौर पर 10 किलोमीटर की गहराई पर आते हैं, जो गहरे भूकंपों की तुलना में तीन गुना ज्यादा खतरनाक होते हैं। उदाहरण के लिए, 2015 में नेपाल का भूकंप गहराई में होने की वजह से कम नुकसानदायक था।

देहरादून की जमीन का होगा अध्ययन

केंद्र सरकार ने हिमालय के कुछ शहरों में भूकंप की संवेदनशीलता का अध्ययन शुरू किया है, जिसमें देहरादून भी शामिल है। सीएसआईआर बेंगलूरू इस अध्ययन को अंजाम देगा। इसमें देहरादून की जमीन की चट्टानों और उनकी मोटाई का विश्लेषण होगा। पहले भी वाडिया इंस्टीट्यूट और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने इस दिशा में काम किया है, लेकिन अब और विस्तृत अध्ययन होगा।

क्या है टेक्टोनिक तनाव?

डॉ. विनीत गहलोत के मुताबिक, हिमालय में उत्तर-दक्षिण दिशा में टेक्टोनिक तनाव बढ़ रहा है। प्लेटें हर साल करीब दो सेंटीमीटर खिसकती हैं, लेकिन उत्तराखंड में यह गति बहुत धीमी है। इस वजह से प्लेटों का एक हिस्सा ‘लॉक्ड’ हो जाता है, जिससे तनाव बढ़ता है। नेपाल में भी ऐसी ही स्थिति भूकंप का कारण बनी थी।

भूकंप से बचाव के लिए सेंसर

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 169 जगहों पर सेंसर लगाए गए हैं। ये सेंसर 5 तीव्रता से ज्यादा के भूकंप की स्थिति में 15 से 30 सेकेंड पहले चेतावनी देंगे। ‘भूदेव’ ऐप के जरिए लोगों को यह जानकारी मिलेगी, ताकि वे खुद को सुरक्षित कर सकें।

सीएसआईआर बेंगलूरू के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. इम्तियाज परवेज कहते हैं कि पूरे हिमालय में ऊर्जा जमा हो रही है। कुछ जगहों पर यह ऊर्जा निकल जाती है, लेकिन फिर दोबारा जमा होने लगती है। मध्य और पूर्वोत्तर हिमालय में यह ऊर्जा ज्यादा है, लेकिन इसका निकलना कब होगा, यह कहना मुश्किल है।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *