देहरादून : देहरादून में एक नौ साल की मासूम बच्ची की मां सुप्रिया नौटियाल इन दिनों राहत की सांस ले रही हैं। उनके पति की मौत के बाद जो बोझ उन पर आ पड़ा था, वह अब हल्का हो गया है। जिलाधिकारी सविन बंसल की सख्ती के चलते एचडीएफसी एर्गो जनरल इंश्योरेंस कंपनी को झुकना पड़ा और उसने 8.92 लाख रुपये का चेक जिला प्रशासन के नाम जमा कर दिया।
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कहानी शुरू हुई एक साधारण वाहन लोन से
सुप्रिया के पति प्रदीप रतूड़ी ने गाड़ी खरीदने के लिए करीब 8.11 लाख रुपये का लोन लिया था। बैंक ने साफ कहा था – लोन के साथ बीमा कराना जरूरी है। यह नियम आईआरडीए (IRDAI) का है, ताकि अगर कर्जदार की मौत हो जाए तो उसका परिवार कर्ज के बोझ तले न दबे।
पॉलिसी एचडीएफसी एर्गो की ही ली गई – सर्व सुरक्षा प्लस प्लान। लेकिन पति की मौत के बाद जब सुप्रिया ने क्लेम मांगा, तो कंपनी ने टालमटोल शुरू कर दी। बैंक वाले वाहन उठाने की धमकी देने लगे। नौ साल की बेटी को सामने रखकर एक विधवा अकेले कहां-कहां भटकती?
जिलाधिकारी के दरवाजे पर पहुंची गुहार
15 नवंबर 2025 को सुप्रिया जिलाधिकारी सविन बंसल के पास पहुंचीं। अपनी पूरी कहानी सुनाई। दस्तावेज दिखाए। जिलाधिकारी ने तुरंत संज्ञान लिया। कंपनी को नोटिस भेजा गया – पांच दिन के अंदर लोन क्लियर करो, वरना संपत्ति कुर्क होगी और नीलामी हो जाएगी।
कंपनी के पास कोई रास्ता नहीं बचा। 5 दिसंबर को उसने 8.92 लाख रुपये (मूलधन + ब्याज) का चेक तहसील सदर में जमा कर दिया। अब यह रकम सुप्रिया को मिलेगी और उनका लोन पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
यह कोई अकेला मामला नहीं है
उत्तराखंड में पिछले कुछ महीनों से लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां लोन के साथ लिया गया बीमा होने के बावजूद कंपनियां क्लेम देने से भाग रही हैं। कई बार तो पॉलिसी की कॉपी तक नहीं दी जाती। बैंक और इंश्योरेंस कंपनी मिलकर आम आदमी को परेशान करते हैं। लेकिन देहरादून के जिलाधिकारी ने साफ कर दिया है – अब ऐसा नहीं चलेगा। कई अन्य मामलों में भी कुर्की की कार्रवाई हो चुकी है और कुछ शाखाओं पर ताले तक लग चुके हैं।
अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा हो तो क्या करें?
- सबसे पहले अपने सभी दस्तावेज सुरक्षित रखें – लोन एग्रीमेंट, बीमा पॉलिसी की कॉपी (अगर नहीं दी गई है तो मांगें)।
- क्लेम रिजेक्ट होने पर कंपनी के ग्राहक सेवा विभाग, फिर IRDAI के पास शिकायत करें।
- फिर भी बात न बने तो जिला उपभोक्ता फोरम या जिलाधिकारी कार्यालय में सीधे आवेदन करें। देहरादून का यह केस साबित करता है कि प्रशासन अब सचमुच साथ खड़ा है।
