Haridwar Land Scam : उत्तराखंड में पहली बार ऐसा हुआ है कि सत्ताधारी सरकार ने अपने ही प्रशासनिक तंत्र के शीर्ष अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाया है। हरिद्वार में हुए ज़मीन घोटाले ने न केवल जनता का ध्यान खींचा, बल्कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की शून्य सहनशीलता नीति को भी सामने लाया।
इस घोटाले ने राज्य की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था में सुधार की एक नई उम्मीद जगाई है। धामी सरकार ने साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार, चाहे वह किसी भी स्तर पर हो, बख्शा नहीं जाएगा। यह कार्रवाई न केवल एक घोटाले का पर्दाफाश है, बल्कि उत्तराखंड में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
हरिद्वार नगर निगम द्वारा कूड़े के ढेर के पास स्थित एक अनुपयुक्त कृषि भूमि को 54 करोड़ रुपये में खरीदने का मामला सामने आया था, जिसने पूरे राज्य में हंगामा मचा दिया। इस सौदे में न तो पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई और न ही भूमि की वास्तविक आवश्यकता थी।
शासन के नियमों को ताक पर रखकर किया गया यह सौदा शुरू से ही संदेह के घेरे में था। लेकिन इस बार मामला दबने के बजाय उजागर हुआ। मुख्यमंत्री धामी ने त्वरित और निष्पक्ष जांच के आदेश दिए, जिसके बाद तीन बड़े अधिकारियों—जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी, और एसडीएम अजयवीर सिंह—को उनके पदों से हटा दिया गया।
इन अधिकारियों पर भूमि खरीद में अनियमितताओं और लापरवाही का आरोप है, और अब इनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू हो चुकी है।
इसके अलावा, नगर निगम के वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक विक्की, रजिस्ट्रार कानूनगों राजेश कुमार, और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कमलदास को भी इस घोटाले में संलिप्तता के चलते निलंबित कर दिया गया। पहले से ही सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, प्रभारी अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट, और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को निलंबित किया जा चुका है।
संपत्ति लिपिक वेदवाल की सेवा विस्तार को भी समाप्त कर दिया गया, और उनके खिलाफ सिविल सर्विसेज नियमों के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। इस पूरे मामले की गहन जांच अब विजिलेंस विभाग को सौंपी गई है, जो इस घोटाले के हर पहलू को उजागर करेगा।
मुख्यमंत्री धामी की इस कार्रवाई ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तराखंड में अब कोई भी भ्रष्टाचार के मामले में बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह कितना ही बड़ा अधिकारी क्यों न हो। यह कदम न केवल भ्रष्टाचार के खिलाफ एक चेतावनी है, बल्कि जनता के बीच यह संदेश भी देता है कि सरकार का फोकस सिर्फ योजनाओं पर नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुधार और पारदर्शिता पर भी है।
यह ऐतिहासिक फैसला अन्य अधिकारियों के लिए भी एक सबक है कि अब लापरवाही और अनियमितताओं का दौर खत्म हो चुका है। उत्तराखंड की जनता को अब यह भरोसा है कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी तरह प्रतिबद्ध है।