देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित थराली क्षेत्र पिछले कई महीनों से सुर्खियों में है। 5 अगस्त 2025 को बादल फटने और भारी बारिश ने पूरे इलाके को तहस-नहस कर दिया था। दर्जनों लोग बह गए, सैकड़ों घर तबाह हो गए और सड़कें-बिजली-पानी सब गायब हो गया। यह उत्तराखंड की हालिया सबसे भयावह प्राकृतिक आपदाओं में से एक थी।
बचाव कार्य में सरकार ने दिखाई तेज़ी
आपदा आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद स्थिति की निगरानी शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तीन दिन तक लगातार घटनास्थल पर डटे रहे। सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय प्रशासन ने मिलकर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। भाजपा का दावा है कि इस बार राहत राशि भी पहले से किये गए किसी भी मुआवजे से कहीं ज़्यादा दी गई है।
स्थानीय लोगों और राहत कार्य से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि शुरू के 15-20 दिन तो पूरी मशीनरी दिन-रात जुटी रही। आरएसएस के स्वयंसेवक, कई एनजीओ और भाजपा कार्यकर्ता भी लगातार ज़मीन पर डटे रहे।
चार महीने बाद अचानक कांग्रेस को याद आई आपदा?
इसी हफ्ते कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल थराली पहुंचा। राहत शिविरों में गए, पीड़ितों से मिले और सरकार पर लापरवाही के आरोप लगाए। लेकिन भाजपा ने इसे “राजनीतिक नाटक” करार दे दिया।
भाजपा के वरिष्ठ विधायक और प्रदेश प्रवक्ता विनोद चमोली ने साफ कहा, “जब आपदा आई थी तब कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता कहाँ थे? चार महीने तक एक भी नेता नहीं दिखा। न ज़मीन पर आए, न दिल्ली से फोन करके संवेदना जताई। अब जब घाव सूखने लगे हैं, तब आकर फोटो खिंचवा रहे हैं। ये डिलीवरी नहीं, सिर्फ़ ड्रामेबाजी है।”
जनता के लिए ये मायने क्यों रखता है?
उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएँ नई नहीं हैं। हर साल बरसात में कहीं न कहीं बादल फटता है, कहीं भूस्खलन होता है। ऐसे में लोगों को सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है तुरंत मदद की। अगर विपक्ष भी उसी समय साथ खड़ा दिखे तो लोगों का मनोबल बढ़ता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आपदा के समय अगर कोई बड़ा दल पूरी तरह गायब रहे और बाद में सिर्फ़ आलोचना करने आए तो उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। यही वजह है कि भाजपा इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है।
