देहरादून : देहरादून जिले के दूरदराज इलाके में एक छोटा-सा सरकारी स्कूल है – राजकीय प्राथमिक विद्यालय लिस्ट्राबाद। यहाँ 34 मासूम बच्चे पढ़ने आते हैं, लेकिन लम्बे समय से सिर्फ एक ही शिक्षिका सभी कक्षाएँ संभाल रही थीं। नतीजा? बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। मगर अब हालात बदल गए हैं। जिलाधिकारी सविन बंसल के त्वरित हस्तक्षेप से महज एक दिन के अंदर स्कूल में दूसरी शिक्षिका की तैनाती हो गई।
गाँव के शिविर में उठी थी आवाज
बीते दिनों ग्राम इठारना में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बहुउद्देशीय जनसुनवाई शिविर लगा था। ऐसे शिविर उत्तराखंड में आम लोगों की समस्याओं को तुरंत सुनने और सुलझाने का बेहतरीन माध्यम बन चुके हैं।
इसी शिविर में लिस्ट्राबाद ग्रांट के ग्राम प्रधान ने डीएम साहब के सामने अपनी पीड़ा रखी। उन्होंने बताया कि स्कूल में सिर्फ एक शिक्षिका होने की वजह से बच्चों को पूरा ध्यान नहीं मिल पाता। छोटे-छोटे बच्चे हैं, एक साथ कई कक्षाएँ चलानी पड़ती हैं – यह किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं।
डीएम ने लिया तुरंत एक्शन
जिलाधिकारी सविन बंसल ने शिकायत को गंभीरता से लिया। वहीं मौके पर मौजूद मुख्य शिक्षा अधिकारी को फौरन निर्देश दे दिए कि 24 घंटे के अंदर अतिरिक्त शिक्षक की व्यवस्था की जाए। अधिकारी भी हरकत में आ गए।
अगले ही दिन शिक्षा विभाग ने औवन्धिक सहायक अध्यापिका को राजकीय प्राथमिक विद्यालय लिस्ट्राबाद में तैनाती का आदेश जारी कर दिया। ब्लॉक शिक्षा अधिकारी डोईवाला को तुरंत अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है। अब स्कूल में दो शिक्षिकाएँ होंगी और बच्चों की पढ़ाई फिर से पटरी पर आएगी।
आखिर यह मायने क्यों रखता है?
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी पुरानी समस्या रही है। एक शिक्षक पर कई कक्षाओं का बोझ पड़ने से बच्चों का आधारभूत शिक्षा स्तर प्रभावित होता है – जो आगे चलकर ड्रॉपआउट का बड़ा कारण बन जाता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी प्राथमिक स्तर पर कम से कम दो शिक्षकों की अनिवार्यता की बात करती है। ऐसे में डीएम का यह त्वरित फैसला न सिर्फ लिस्ट्राबाद के 34 बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करता है, बल्कि पूरे जिले के अधिकारियों को यह संदेश देता है कि जनता की छोटी-छोटी शिकायतें भी प्राथमिकता हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब ऊँचे अधिकारी खुद गाँवों में आकर समस्याएँ सुनते हैं और उसी वक्त समाधान कर देते हैं, तो प्रशासन पर भरोसा बढ़ता है। यही “सेवा की गारंटी” का असली मतलब है।
बच्चों के चेहरे फिर से खिल उठे हैं। अब सुबह स्कूल जाने का इंतजार रहेगा – क्योंकि अब उनकी पढ़ाई फिर से मजेदार और व्यवस्थित होने वाली है!
