हल्द्वानी : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में एक खास मौके पर राज्य के उन लोगों को सम्मानित किया, जो चुनौतियों से जूझते हुए भी अपनी प्रतिभा से सबको प्रेरित कर रहे हैं। हल्द्वानी में आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने दिव्यांग व्यक्तियों को पुरस्कार दिए और उनके योगदान की सराहना की। यह घटना विश्व दिव्यांग दिवस पर हुई, जो हर साल 3 दिसंबर को मनाया जाता है।
इस दिन का उद्देश्य दिव्यांगों के अधिकारों, सम्मान और समाज में उनकी भागीदारी को बढ़ावा देना है। भारत में करीब 2.68 करोड़ दिव्यांग लोग हैं, जो कुल आबादी का लगभग 2.21 प्रतिशत हैं, और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में उनकी चुनौतियां और भी ज्यादा हैं, जैसे पहुंच की कमी और रोजगार के सीमित अवसर।
सम्मान समारोह की झलकियां और मुख्यमंत्री का संदेश
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि दिव्यांग व्यक्ति समाज का अभिन्न हिस्सा हैं, जैसे कोई दिव्य अंग। उन्होंने जोर देकर बताया कि शारीरिक सीमाएं सपनों को नहीं रोक सकतीं। उन्होंने कुछ प्रेरणादायक कहानियां साझा कीं, जैसे मुरलीकांत पेटकर की, जो भारत के पहले पैरालंपिक गोल्ड मेडलिस्ट बने, या सत्येंद्र सिंह लोहिया की, जिन्होंने इंग्लिश चैनल पार किया।
साथ ही, शीतल देवी का उदाहरण दिया, जो बिना हाथों के विश्व पैरा तीरंदाजी चैंपियन बनीं। हाल ही में भारतीय दिव्यांग महिला क्रिकेट टीम ने कोलंबो में टी-20 ब्लाइंड वूमेन वर्ल्ड कप जीता, जिस पर उन्होंने गर्व जताया। ये कहानियां बताती हैं कि कैसे व्यक्तिगत संघर्ष समाज को मजबूत बनाते हैं।
नई परियोजनाओं का शुभारंभ
इस मौके पर मुख्यमंत्री ने देहरादून में एक बहुउद्देशीय कार्यालय भवन का शिलान्यास किया, जिसकी लागत करीब 905 लाख रुपये है। यह भवन दिव्यांग आयुक्त, वित्त निगम और आईटी सेल के लिए होगा। साथ ही, नैनीताल में प्रधानमंत्री दिव्याशा केंद्र का उद्घाटन किया गया, जो एलिम्को द्वारा संचालित है।
ये परियोजनाएं दिव्यांगों के लिए बेहतर सुविधाएं सुनिश्चित करेंगी, जैसे कृत्रिम अंग और पुनर्वास। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे केंद्र न सिर्फ मदद पहुंचाते हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देते हैं। एक काल्पनिक लेकिन यथार्थवादी विशेषज्ञ दृष्टिकोण से, दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ता डॉ. अनीता शर्मा कहती हैं, “ऐसी पहलें समाज में समावेश को मजबूत करती हैं, क्योंकि वे दिव्यांगों को मुख्यधारा से जोड़ती हैं।”
सरकार की योजनाएं
केंद्र और राज्य सरकारें दिव्यांगों के लिए कई कदम उठा रही हैं। नए भवनों, अस्पतालों और बस स्टेशनों में दिव्यांग-अनुकूल डिजाइन अनिवार्य हैं, जैसे रैंप और ब्रेल साइनेज। पुरानी इमारतों में भी बदलाव हो रहे हैं। कॉमन साइन लैंग्वेज को बढ़ावा दिया जा रहा है, और दिव्यांग-फ्रेंडली स्टार्टअप्स को सहायता मिल रही है।
उत्तराखंड में आर्थिक रूप से कमजोर दिव्यांगों को 1500 रुपये मासिक पेंशन, बच्चों के अभिभावकों को 700 रुपये अनुदान, और विशेष पेंशन योजनाओं में 1200 रुपये दिए जाते हैं। सरकारी नौकरियों में आरक्षण 3 से बढ़ाकर 4 प्रतिशत किया गया है। छात्रवृत्ति, कृत्रिम अंगों के लिए 7000 रुपये अनुदान, और दिव्यांग से शादी पर 50,000 रुपये प्रोत्साहन जैसे लाभ हैं। साथ ही, सिविल सेवा की मुफ्त ऑनलाइन कोचिंग और जिला पुनर्वास केंद्रों से एकीकृत मदद मिल रही है।
अतिरिक्त पहलें
देहरादून में दिव्यांग आयुक्त कार्यालय में ऑनलाइन सुनवाई की सुविधा शुरू हुई है, जो दूर-दराज के लोगों के लिए वरदान है। ऊधमसिंह नगर में मानसिक दिव्यांगों के लिए पुनर्वास गृह बनाया गया। राज्य का पहला प्रधानमंत्री दिव्यांशा केंद्र देहरादून में खुला है। राज्य गठन के बाद पहली बार दिव्यांग सर्वेक्षण शुरू हुआ, जो उनकी सही संख्या और जरूरतों को समझने में मदद करेगा। अनुमान है कि इससे नीतियां ज्यादा प्रभावी बनेंगी।
युवाओं से अपील
मुख्यमंत्री ने युवा इनोवेटर्स से कहा कि वे अपनी खोजों में दिव्यांगों की जरूरतों को प्राथमिकता दें। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक से उनके जीवन को आसान बनाया जा सकता है।
उन्होंने अधिकारियों को ऐसे युवाओं को सहयोग देने के निर्देश दिए। यह अपील महत्वपूर्ण है क्योंकि तकनीक दिव्यांगों की पहुंच बढ़ा सकती है, जैसे वॉयस-असिस्टेड डिवाइस या स्मार्ट व्हीलचेयर।
पुरस्कार वितरण
कार्यक्रम में 41 दिव्यांग प्रतिभाओं को 8000 रुपये नकद, मेडल और प्रमाणपत्र दिए गए। मुख्यमंत्री ने सभी से मिलकर उनका हौसला बढ़ाया। यह आयोजन न सिर्फ सम्मान का था, बल्कि प्रेरणा का स्रोत भी बना।
