देहरादून : उत्तराखंड की देवभूमि हमेशा से वीरों की भूमि रही है, जहां के लोग देश की रक्षा में अपना सबकुछ न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। हाल ही में, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हल्द्वानी में एक विशेष कार्यक्रम में पूर्व अर्धसैनिक बलों के सदस्यों से बात की।
उन्होंने इन वीरों की बहादुरी की सराहना की और बताया कि कैसे ये जवान कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर चुनौती का सामना करते हुए देश की सेवा कर रहे हैं। यह कार्यक्रम न सिर्फ सम्मान का मौका था, बल्कि राज्य सरकार की उन योजनाओं का भी खुलासा हुआ जो इन परिवारों की जिंदगी आसान बनाने वाली हैं।
अर्धसैनिक बलों की भूमिका और उनका योगदान
भारत में अर्धसैनिक बल जैसे सीआरपीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी देश की आंतरिक सुरक्षा के मजबूत स्तंभ हैं। ये जवान आतंकवाद से लड़ाई से लेकर प्राकृतिक आपदाओं में मदद तक हर मोर्चे पर डटे रहते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि इनकी देशभक्ति और साहस राष्ट्र की असली शान है।
एक रिटायर्ड सैन्य विशेषज्ञ, कर्नल (सेवानिवृत्त) राजेश शर्मा के अनुसार, “ऐसे सम्मान समारोह पूर्व सैनिकों का मनोबल बढ़ाते हैं और युवाओं को सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं। उत्तराखंड जैसे राज्य में, जहां हर परिवार में कोई न कोई सैनिक होता है, यह पहल बहुत जरूरी है।”
नई कल्याण योजनाओं का ऐलान
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कई महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं, जो पूर्व अर्धसैनिकों और उनके परिवारों को सीधा फायदा पहुंचाएंगी। उदाहरण के लिए, वीरता पदक पाने वाले जवानों को 5 लाख रुपये की एकमुश्त मदद मिलेगी। साथ ही, जिन विधवाओं या पूर्व जवानों के पास अपनी जमीन नहीं है, उन्हें संपत्ति खरीदने पर स्टांप ड्यूटी में 25% की छूट दी जाएगी।
राज्य में अर्धसैनिक कल्याण परिषद को सक्रिय किया जाएगा, और इसके लिए अलग से ऑफिस स्पेस मिलेगा। इसके अलावा, सैनिक कल्याण विभाग में नए पद बनाए जाएंगे, जहां पूर्व सैनिकों को ही नौकरी दी जाएगी। अर्धसैनिकों के बच्चों की शादी के लिए भी आर्थिक सहायता का प्रावधान होगा, ठीक वैसे ही जैसे सेना के जवानों को मिलती है। मुख्यमंत्री ने सीजीएचएस भवन के लिए जमीन चुनने के आदेश भी दिए, ताकि स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हों।
क्यों महत्वपूर्ण हैं ये कदम?
ये घोषणाएं सिर्फ वित्तीय मदद नहीं हैं, बल्कि एक बड़ा संदेश हैं कि राज्य सरकार पूर्व सैनिकों की चुनौतियों को समझती है। मुख्यमंत्री खुद एक सैनिक परिवार से आते हैं, इसलिए वे जानते हैं कि रिटायरमेंट के बाद जीवन कितना मुश्किल हो जाता है। शहीदों के परिवारों को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े, यह सरकार की प्राथमिकता है।
एक सामाजिक विश्लेषक, डॉ. मीना कुमारी कहती हैं, “ऐसी योजनाएं परिवारों की आर्थिक स्थिरता बढ़ाती हैं और समाज में सम्मान की भावना को मजबूत करती हैं। उत्तराखंड में जहां बेरोजगारी और पलायन बड़ी समस्या है, ये कदम स्थानीय स्तर पर रोजगार भी पैदा करेंगे।”
राज्य सरकार की पिछली पहलें
पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड सरकार ने पूर्व सैनिकों के लिए कई कदम उठाए हैं। शहीदों के परिवारों को मिलने वाली अनुग्रह राशि 10 लाख से बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दी गई है।
वीरता पुरस्कारों की राशि में भी अच्छी वृद्धि हुई है। शहीदों की याद में स्मारक और द्वार बनाए जा रहे हैं, और इस साल 10 नए स्मारकों को मंजूरी मिली है। इसके अलावा, शहीदों के एक परिजन को सरकारी नौकरी देने की व्यवस्था शुरू की गई है। ये सभी प्रयास दिखाते हैं कि सरकार सैनिकों के योगदान को भूल नहीं रही।
राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा और विकास
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की भी तारीफ की, जहां सेना का आधुनिकीकरण तेजी से हो रहा है। भारत अब रक्षा उपकरणों में आत्मनिर्भर बन रहा है और कई देशों को निर्यात कर रहा है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अभियान ने स्वदेशी हथियारों की ताकत साबित की है। राज्य स्तर पर, सरकार पहाड़ी इलाकों में अवैध कब्जों के खिलाफ सख्त है।
अब तक 10 हजार एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन मुक्त कराई गई है और 550 से अधिक अवैध इमारतें तोड़ी गई हैं। समान नागरिक संहिता, धर्मांतरण विरोधी कानून और दंगा रोकने वाले नियमों से सामाजिक एकता मजबूत हुई है।
उत्तराखंड का वीर इतिहास और भविष्य
उत्तराखंड न सिर्फ धार्मिक स्थलों के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां के लोग सेना में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो भारत के कुल सैनिकों में उत्तराखंड का हिस्सा 5-7% तक है, जो राज्य की आबादी से कहीं ज्यादा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यहां की संस्कृति और परंपराओं की रक्षा सबकी जिम्मेदारी है। सरकार “विकल्प रहित संकल्प” के साथ राज्य को देश का सबसे अच्छा बनाने पर काम कर रही है। सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने भी सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई।
इस कार्यक्रम में हल्द्वानी के मेयर, जिला पंचायत अध्यक्ष, विधायक और कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। ऐसे आयोजन न सिर्फ सम्मान देते हैं, बल्कि समाज को एकजुट करते हैं। ये कदम पूर्व सैनिकों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाएंगे और देश की सुरक्षा को और मजबूत करेंगे।
