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राजीव महर्षि का तुगलकी फरमान पर फूटा गुस्सा – धामी सरकार से तुरंत वापसी की मांग

By: Sansar Live Team

On: Friday, July 4, 2025 9:45 AM

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Dehradun News :  उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों पर नाम पट लगाने के सरकारी आदेश ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मीडिया प्रभारी राजीव महर्षि ने इस आदेश को “तुगलकी फरमान” करार देते हुए इसे तत्काल वापस लेने की मांग की है।

उन्होंने कहा कि यह नियम सामाजिक समरसता को ठेस पहुंचा सकता है और इसके पीछे की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। महर्षि ने सरकार से पूछा कि क्या इस तरह के नियम देश के अन्य हिस्सों, जैसे जम्मू-कश्मीर या नॉर्थ ईस्ट, में भी लागू किए जाएंगे? 

आदेश के पीछे मंशा पर सवाल

महर्षि ने अपने बयान में कहा कि किसी दुकानदार को अपना नाम बताने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन अगर इस आदेश के पीछे कोई गलत इरादा है, तो यह चिंता का विषय है। पिछले कुछ वर्षों से कुछ नेताओं के बयानों में एक खास समुदाय के आर्थिक बहिष्कार की बात सामने आती रही है।

ऐसे में यह आदेश सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करने वाला लगता है। उन्होंने सरकार से साफ-साफ जवाब मांगा कि इस नियम का असल मकसद क्या है और अगर इससे किसी समुदाय के कारोबार को नुकसान पहुंचता है, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?

यूसीसी और नीतियों में एकरूपता की बात

कांग्रेस नेता ने यह भी सवाल उठाया कि एक तरफ सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की बात करती है, लेकिन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नीतियां कैसे अपना सकती है? उन्होंने पूछा कि क्या नॉर्थ ईस्ट जैसे क्षेत्रों में भी इस तरह का नियम लागू होगा? महर्षि ने कहा कि जनता सरकार की मंशा को समझना चाहती है और इस आदेश को सामाजिक एकता के खिलाफ एक कदम मान रही है। 

प्राथमिकताओं पर उठे सवाल

महर्षि ने तंज कसते हुए कहा कि उत्तराखंड इस समय गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। सड़क हादसों में लोग अपनी जान गंवा रहे हैं, कई मार्ग अवरुद्ध हैं, और आपदा प्रभावित लोगों को राहत की सख्त जरूरत है। इसके बावजूद सरकार का ध्यान इन बुनियादी मुद्दों की बजाय ऐसे विवादास्पद आदेशों पर केंद्रित है। उन्होंने कहा कि ऑलवेदर रोड का दावा करने वाली सरकार को पहले पीड़ितों की मदद पर ध्यान देना चाहिए। 

समाज को जोड़ने की अपील

अंत में, महर्षि ने सरकार से इस आदेश पर पुनर्विचार करने और इसे वापस लेने की अपील की। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे कदम समाज में विभाजन को बढ़ावा दे सकते हैं। उत्तराखंड जैसे शांतिप्रिय राज्य में सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए सरकार को अपनी प्राथमिकताएं ठीक करने की जरूरत है।  

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